---केंद्रीय कारा के फांसी स्थल व सेल को आम लोगों के दर्शन हेतु खोलने पर होगा विचार
--- खुदीराम बोस को शहादत दिवस पर केंद्रीय कारा में फांसी स्थल पर दी गई श्रद्धांजलि
चंदन कुमार, मुख्य संवाददाता आईएनटी मुजफ्फरपुर। अमर शहीद खुदीराम बोस के 118वें शहादत दिवस पर तिरहुत प्रमंडलीय आयुक्त राजकुमार ने कहा कि खुदीराम बोस के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वे हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि केंद्रीय कारा के अंदर स्थित फांसी स्थल और ऐतिहासिक सेल को आम लोगों के लिए सालभर दर्शन हेतु खोलने की मांग पर प्रशासन गंभीरता से विचार करेगा।
जिलाधिकारी सुब्रत कुमार सेन ने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र में खुदीराम ने हंसते-हंसते फांसी का वरण कर युवाओं के लिए अमर प्रेरणा का उदाहरण पेश किया। ऐसे सैकड़ों बलिदानों से ही देश आजाद हुआ है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे देश की एकता और अखंडता के लिए उनसे प्रेरणा लें।
सुबह से गूंजा जेल परिसर, बजे शहादत गीत
सोमवार अहले सुबह सेंट्रल जेल परिसर देशभक्ति की भावना से सराबोर हो उठा। रंगीन बल्बों से सजी जेल में हवन की भीनी सुगंध फैली थी और बैकग्राउंड में धीमी आवाज में वह ऐतिहासिक गीत बज रहा था एक बार विदाई दे मां घूरे आसी, हांसी-हांसी परबो फांसी, देखबे जोगोत वासी” जिसे गाते हुए खुदीराम ने फांसी का फंदा चूमा था।
सुबह करीब 3 बजे से ही लोग जेल गेट पर जुटने लगे। गेट खुलने का सब बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। मौके पर प्रमंडलीय आयुक्त राजकुमार, डीएम सुब्रत कुमार सेन, एसएसपी सुशील कुमार, एसडीपीओ टाउन सुरेश कुमार, एसडीओ पूर्वी समेत कई अधिकारी पहुंचे।
101 राखियां और गांव की माटी लेकर पहुंचे परिजन
गांव से पहुंचे 101 राखियां और मंदिर का प्रसाद
पश्चिम बंगाल के मेदिनापुर स्थित खुदीराम बोस के पैतृक गांव से आए
प्रकाश कुमार हलधर, उन पर शोध करने वाले अरिंदम भौमिक,अनुप मल्लिक, पंपा मल्लिक, रवींद्रनाथ देव, टुम्पा डे, कल्याणी मेहता और तुहीन मेहता देवी मंदिर का प्रसाद और गांव की मिट्टी लेकर केंद्रीय कारा परिसर पहुंचे। उन्होंने सेल में द स्मारक पर पुष्प अर्पित किए। 101 राखियां कारा प्रशासन को दी। फांसी स्थल पर माटी में दो पौधे लगाए गए और प्रसाद अर्पित किया गया। इसी स्थान पर 11 अगस्त 1908 को सुबह 3:50 बजे खुदीराम बोस को फांसी दी गई थी। ठीक उसी समय अधिकारियों और उपस्थित लोगों ने सलामी दी और पुष्पांजलि अर्पित की।श्रद्धांजलि के बाद सभी ऐतिहासिक सेल में पहुंचे, जहां खुदीराम को रखा गया था। श्रद्धा से भरकर लोगों ने बाहर जूते-चप्पल उतारे और अंदर फूल चढ़ाए। माना जाता है कि आज भी उनकी आत्मा वहीं वास करती है।
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