नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का समापन
हवन व भंडारा में जुटे श्रद्धालु, राधे राधे से गुंजता रहा यज्ञ स्थल
उषा कुमारी, आईएनटी, मुजफ्फरपुर
मुज़फ़्फ़रपुर/कन्हौली स्थित सर्वोदय ग्राम जिला खादी ग्रामोद्योग संघ में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के नौवें और अंतिम दिन हवन के समापन हुआ।राष्ट्रीय स्तर के कथा वाचक संत श्री छोटे बापूजी महाराज (अयोध्या) ने कथा में बताया कि भगवान कृष्ण का दांपत्य जीवन इस प्रकार से है पति-पत्नी के संबंध की मधुरता का दर्शन कराया। भगवती रुक्मणी भगवान कृष्ण के लिए नित्य भोग बनती है। प्रेम पूर्वक उनका भोजन कराती है। उससे भगवान कृष्ण का स्नेह भगवती रुक्मणी को प्राप्त होता है। समाज में आजकल पति-पत्नी के संबंध में कटुता आ रही है। तलाक तक लोग पहुंच जाते हैं।
पत्नी यदि चाहें तो पति को प्रेम से जीत सकती हैं और इसकी शुरुआत भोजन से होती है। इसलिए धर्म पुराणों में बताया गया है कि पहले पति को भोजन कारा कर फिर स्वयं भोजन करें। दूसरी बात यह भी है कि भोजन बनाने वाले की मानसिकता का प्रभाव भोजन में पड़ता है । आजकल लोग होटल में खाते हैं। होटल से खाना मांगते हैं, तो प्रेम बढ़े कैसे। पत्नी को स्वयं अपने हाथों से प्रेम पूर्वक भोजन बनाकर पति को खिलाना चाहिए। यह संदेश भागवत जी देते हैं।
चार प्रकार के आश्रमों का वर्णन पुराणों में है ब्रह्मचर्य, आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम इन चारों आश्रमों में गृहस्थआश्रम धन्य होता है। जहां पति-पत्नी परिवार माता-पिता बंधु सब एक साथ रहते हैं। भगवान की भक्ति करते हुए अपना जीवन का आनंद प्राप्त करते हैं। उसे गृहस्थ आश्रम का प्रथम कर्तव्य अतिथि देवो भव होना चाहिए। जिसे ग्रहस्थ जीवन में उत्थान होता है। अतिथि कोई साधु हो सकते हैं। कोई हो सकते हैं। घर में आगंतुक का सम्मान हो। इससे परिवार की उन्नति होती है। भगवान के द्वारका में यह व्यवस्था थी कि बाहर से जो कोई भी आएंगे। वह भगवान का दर्शन अवश्य प्राप्त करेंगे और उनकी सेवा हो। इसी क्रम में भगवान के सखा सुदामा जी का आगमन होता है, जो अत्यंत दीन हीन है। परंतु भगवत भक्ति रूपी धन से परिपूर्ण है। द्वारकाधीश में सुदामा को दो लोग का वैभव प्रदान किया, जो भगवान के हो जाते हैं। उनको कभी भी किसी भी प्रकार की की कमी नहीं होती है। सदा आनंद होता है। अपने परिवार को धार्मिक बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए घर में धार्मिक कृतों का आचरण होना चाहिए। जैसे यज्ञ जपतप पूजा पाठ इत्यादि करना चाहिए।
कुरुक्षेत्र में भगवान यज्ञ का आयोजन करते हैं। सूर्य ग्रहण के अवसर पर जिसमें विश्व के लोग एकत्रित होते हैं और यज्ञ की स्थापना भगवान करते हैं। जगत को संदेश दिया कि परिवार धार्मिक हो, तो वृद्धि होती है। क्योंकि यह तो धर्म तत्व जय इस पृथ्वी पर अच्छा चीज मनुष्य के बस में नहीं होती। हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस विधि हाथ भगवान के पुत्र शंभर आदि के द्वारा ऋषि दुर्वासा का अपमान हुआ। इनके साथ के कारण यदुवंश का विनाश हुआ।भगवान स्वधाम गए परीक्षित जी को मोक्ष प्राप्त हुआ। सब पर भागवत जी की कृपा हो।
छोटे बापूजी महाराज ने भागवत कथा के बारे में कहा कि पितृपक्ष नवदिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ श्रम दिवस परिपूर्णतम परमात्मा भगवान श्रीकृष्ण की कथा मनुष्य जीवन के हर पहलू में आचारणीय है।
भगवान श्री कृष्ण की अनेक प्रकार की लीलाएं हैं जैसे
बाल लीला,गोचरण लीला, माखन चोरी लीला,कालिया नाग मर्दन लीला आदि आदि लीलाओं से भागवत को अक्षय आनंद और सुख की प्राप्ति होती है। लेकिन कृष्ण कथा में सबसे महत्वपूर्ण भगवान की द्वारिका की लीला है, जो हम सभी के लिए अति आवश्यक है।
जब भगवान द्वारकाधीश बने, तो रुक्मणी जी महारानी बनी। भगवान की आठ पटरानियां है और 16100 रानी है।कथा से पहले मुख्य यजमान मुजफ्फरपुर जिला खादी ग्रामोद्योग संघ के मंत्री वीरेंद्र कुमार अपनी धर्मपत्नी अनिता कुमारी के साथ उपस्थित रहे। दीप प्रज्वलन रूपेश चंद्र रूपम, मृत्युंजय कुमार, प्रेम शंकर शर्मा, लक्ष्मी कुमारी और अर्चना कुमारी ने सामूहिक रूप से की। इस अवसर पर अखंड भारत पुरोहित महासभा के संस्थापक हरिशंकर पाठक, धर्मवीर कुमार, कमलेश कुमार, विजय कुमार सिंह, रजनीश कुमार ठाकुर और राजन कुमार समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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