नेपाल जनता पार्टी के नेता पारस द्विवेदी का दावा है कि न केवल छपकैया, बल्कि अन्य सीमावर्ती गांवों में भी मस्जिदों और मदरसों की संख्या में "असामान्य वृद्धि" देखी जा रही है।
द्विवेदी का कहना है, “नेपाल के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच हमेशा भाईचारा रहा है। लेकिन मधेश आंदोलन के बाद विदेशी घुसपैठियों को मिली नागरिकता ने तराई में धार्मिक असंतुलन और सुरक्षा चुनौती को जन्म दिया है।” उनका आरोप है कि इसमें पाकिस्तान और टर्की जैसे बाहरी देशों की गहरी संलिप्तता है।
एक गुप्त सुरक्षा रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान और टर्की की मदद से सीमावर्ती नेपाली क्षेत्रों में मस्जिदों, मदरसों, अनाथालयों और इस्लामिक सांस्कृतिक केंद्रों का तीव्र विस्तार हो रहा है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि भारत में आतंकवाद के विरुद्ध शुरू किए गए “ऑपरेशन सिन्दूर” के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में धार्मिक जमात पर्यटक वीज़ा पर तराई क्षेत्र में आना शुरू हुए हैं।
स्थानीय मस्जिद समितियों के कुछ पदाधिकारियों द्वारा इन गतिविधियों को छिपाए जाने की बात भी एक खुफिया अधिकारी ने कही है। कागज़ों पर ये सभी गतिविधियां धार्मिक और मानवसेवा के नाम पर होती दिखती हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इनका असली उद्देश्य रणनीतिक और सुरक्षा सन्तुलन को प्रभावित करना है।
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2018 में सीमावर्ती क्षेत्रों में मस्जिदों की संख्या 760 थी, जो 2021 तक 1,000 के पार पहुँच गई।
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मदरसों की संख्या 508 से बढ़कर 645 हो चुकी है।
भारतीय मीडिया का आरोप है कि ये संस्थाएं केवल धार्मिक क्रियाकलापों तक सीमित न रहकर कट्टरपंथी विचारधारा, भारत विरोधी प्रचार, आतंकी शरणस्थल और मानव संसाधन निर्माण के अड्डे बन चुकी हैं।
भारत–नेपाल के बीच की 1,751 किलोमीटर लंबी खुली सीमा, जो सांस्कृतिक और सामाजिक मेलजोल का माध्यम रही है, अब भारत की सुरक्षा के लिए एक दोधारी तलवार बनती जा रही है।
जांच में यह भी सामने आया है कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन नेपाल के रास्ते भारत में घुसपैठ कर रहे हैं। पाकिस्तानी और बांग्लादेशी कट्टरपंथियों को नेपाल के गेस्ट हाउस, मदरसे और मस्जिदें सुरक्षित आश्रय स्थल के रूप में मिल रही हैं।
टर्की की एक गैर-सरकारी संस्था आईएचएच (IHH - Foundation for Human Rights and Freedoms and Humanitarian Relief) इस्लामिक संघ नेपाल (ISN) के साथ मिलकर मस्जिद, मदरसा, अनाथालय और अन्य केंद्र चला रही है। सूत्रों का दावा है कि ISN को टर्की की सरकार और खुफिया एजेंसी MIT का अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है।
सीमावर्ती रक्सौल शहर के व्यापारी एवं सीमा विशेषज्ञ महेश अग्रवालका कहना है कि यह पूरी गतिविधि भारत विरोधी एजेंडेका हिस्सा है, जिसमें पाकिस्तान और टर्की अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। उनका कहना है, “अब रोज़-रोज़ खुलने वाली मस्जिदों और मदरसों में से कौन धार्मिक उद्देश्य लिए हुए हैं और कौन रणनीतिक एजेंट—यह पहचानना कठिन हो गया है।”
अग्रवाल ने चेतावनी दी कि काठमांडू और दिल्ली दोनों को अब सजग और सतर्क होने की आवश्यकता है, क्योंकि यह केवल नेपाल की नहीं बल्कि भारत की सीमा सुरक्षा के लिए भी एक गंभीर चेतावनी है।
पारस द्विवेदी का आरोप है कि कुछ सीमावर्ती गांवों में अब मस्जिदों और मदरसों की संख्या हिंदू मंदिरों से अधिक हो गई है, और मुस्लिम जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। ऐसा धार्मिक और जनसंख्या संतुलन भविष्य में सामाजिक टकराव को जन्म दे सकता है।
🚨 विदेशी चंदा, कमजोर निगरानी और तस्करी
धार्मिक संगठनों के नाम पर विदेशी फंडिंग, भारत–नेपाल सीमा से होने वाली तस्करी और नेपाल सरकार की कमजोर निगरानी से हालात और भी ज्यादा गंभीर हो गए हैं। टर्की मानवीय सहायता की आड़ में वैचारिक प्रभाव फैला रहा है, जबकि पाकिस्तान खुली प्रतिस्पर्धा के माध्यम से भारत की सीमा सुरक्षा को चुनौती दे रहा है।
भारत–नेपाल सीमा पर मस्जिद और मदरसों की अस्वाभाविक वृद्धि केवल धार्मिक स्वतन्त्रता का विषय नहीं रह गया है। यह अब एक रणनीतिक, सामाजिक और सुरक्षा संकट का संकेत बन चुका है।
क्या करना होगा?
✅ नेपाल सरकार को विदेशी चंदा पाने वाले सभी धार्मिक संस्थानों की जांच करनी चाहिए।
✅ भारत–नेपाल को संयुक्त खुफिया साझेदारी को मजबूत बनाना होगा।
✅ सीमावर्ती क्षेत्रों में निगरानी और जनसंख्या आँकड़ों का अद्यावधिक विश्लेषण आवश्यक है।
✅ धर्म के नाम पर चल रही किसी भी गतिविधि में पारदर्शिता और वैधानिकता की अनिवार्यता तय होनी चाहिए।
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