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Muzaffarpur:बोले कर्नल दिवाकर आतंकवाद, उग्रवाद से जीता अपने गांव मेंं अशिक्षा के आगे हार महसूस हो रहा :news

 ---- अपने गांव में शिक्षा की अलख जगा रहे कर्नल दिवाकर सिंह चौहान

---- शिक्षा अवकाश पर आए गांव अब बनाएंगे वेब सीरीज


मुजफ्फरपुर:::रांची सेना स्टेशन हेडक्वार्टर से जुड़े सकरा सरैया निवासी कर्नल दिवाकर सिंह चौहान इन दिनों अपने गांव में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। स्टडी लीव पर आए कर्नल दिवाकर  बच्चों को स्कूल से जोड़ने का अभियान चला रहे हैं। कर्नल कहते हैं कि उनके दो बच्चे हैं दोनों पढ़ाई में अव्वल कर रहे हैं। जब गांव में आते हैं तो लगता है कि यहां के बच्चे कैसे आगे बढ़े। इसके लिए वह अभियान चला रहे हैं। बताया कि हम देश में आतंकवाद  व उग्रवाद के खिलाफ कई जगह पर पोस्टिंग हुई। हर जगह जीता। यहां आकर मन दुखी हो जाता हैं। गांव की दशा व दिशा पर चर्चा करते हुए  भावुक होती जाते हैं। आईएनटी टीम से बातचीत करते वक्त उनका प्यारा कुत्ता उनके पास आकर चिपक जाता। घोड़ा को गले लगाकर दुलारते रहते हैं। बताते है कि प्राकृतिक व जीव पर दया किजीए। आपका भला होगा। गरीब की मदद किजीए वह दुआ देगा। 


--गांव की बात पर रोने लगे कर्नल दिवाकर

बताया कि वह गांव में आए तो बच्चों को स्कूल से जोड़ने का काम किया। इसको लेकर ताना भी सुनना पड़ता है। अपने पास महादलित परिवार के शंकर को बुलाया। उसके बच्चे का पैर जन्मजात ही ढेढा हो गया है। बताया कि गांव के लोग समझने को तैयार नहीं। समाजिक एकता के लिए वह महादलित परिवार से भोजन मंगाकर खाते है। उसके बाद उच्च विद्यालय बधनगरी में जाकर वर्ग चलाते हैं। अपनी कहानी कहते हुए कई बार रोने लगे।


भारत माता उनके दिल में व सेना का अनुशासन जीवन में दिखा। बताया कि कर्नल ने बताया कि सुबह मार्निंग वाक से आने के बाद अपने घोड़ा व कुत्ते के साथ समय बीताते है। उनकी सेवा करते है। बताया कि वह अपनी स्टडी लीव समाप्त करने के बाद एक बेव सीरीज बनायेंगे। बताया कि उनकी पहल से करीब पांच हजार बच्चे अलग-अलग स्कूल में जाकर पढ़ रहे। वह बच्चों को आर्मी में जाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। अपनी सेवा उन्हाेंने जम्मू काश्मीर से लेकर छतीसगढ़, असम जैसे वामपंथ उग्रवाद प्रभावित इलाके में दिए है।


अपनी सेवा के कारण उनकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी है। मास कम्यूनिशेन की पढ़ाई के लिए उनको सेना से स्टडी लीव मिली है। वह दो साल के लिए अवकाश पर आए है। इन दिनाेें शिक्षण अवकाश पर 57 दिनों से गांव में है। कर्नल बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के साथ उनको आर्मी में जाने के लिए प्रेरित करते हैं।  बताया कि भारत माता मेरे लिए सबसे उपर हैं। कहा कि हर अभिभावक को चाहिए कि वह पेट काटकर ही सही अपने बच्चे को पढ़ाये। यह उसकी सबसे पड़ी पूंजी होगी। 


जब गांव में आया तो मन दुखी हुआ। यहां के बच्चे स्कूल के बदले इधर-उधर समय पास कर रहे हैं। उसके बाद सुबह मार्निंग वाक के बाद बच्चों को काउंसिलिंग कर सर्वोदय उच्च विद्यालय विशुनपुर बधनगरी पहुंचा रहे। वहां जाकर पढ़ा भी रहे हैं। वहीं अनुसूचित जाति की बस्ती में जाकर उनको स्वच्छता व प्राथमिक स्कूल में जाने के लिए प्रेरित कर रहे। उनका अवकाश सत्र इस वर्ष 21 नवंबर को खत्म हो रहा। बताया कि अवकाश के बाद भी वह जब भी गांव में आएंगे अभियान उनका जारी रहेगा।

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