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समुद्री रास्ते से दुबई पहुची मुजफ्फरपुर की लीची रानीnews

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---जीआई टैग के बाद बढ़ा लीची का मान, किसानों को मिलने लगे बेहतर बाजार
-सुपरप्लम के सहयोग से इस्राइली तकनीक से बदल रही लीची खेती की तस्वीर
रंजन कुमार,मुजफ्फरपुर ::बिहार की प्रसिद्ध मुजफ्फरपुर शाही लीची अब सिर्फ देश नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी मिठास का परचम लहरा रही है। पहली बार यह स्वादिष्ट फल समुद्री मार्ग से मुंबई बंदरगाह के ज़रिए दुबई भेजा गया है। इससे पहले यह हवाई मार्ग से यूरोप, कनाडा, जर्मनी और लेबनान जैसे देशों में पहुँच चुकी है। इस साल साढ़े चार टन लीची समुद्री रास्ते से दुबई रवाना हुई, जो लगभग 15 दिन की यात्रा के बाद भी अपनी ताज़गी और गुणवत्ता को बनाए रखेगी।
किसानों को मिला बेहतर बाज़ार, लीची को वैश्विक पहचान
लीची उत्पादक किसान कह रहे हैं कि इस प्रयास के पीछे काम कर रही है देश की प्रसिद्ध फ्रूट कंपनी सुपरप्लम, जो पिछले पांच वर्षों से लीची उत्पादक राज्यों बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और पंजाब में किसानों के साथ मिलकर उत्पादन, गुणवत्ता और आपूर्ति प्रणाली को आधुनिक बना रही है। सुपरप्लम के नेटवर्क में मुजफ्फरपुर जिले के 43 से ज़्यादा लीची उत्पादक किसान जुड़े हैं, जिन्हें तकनीकी प्रशिक्षण, जैविक खेती के उपाय, और उत्पादन से लेकर बाज़ार तक की सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
इज़राइली विशेषज्ञों की तकनीकी मदद से मिली सफलता
सुपरप्लम के मुख्य प्रबंधक वसंत झा ने बताया कि इस सफलता के पीछे कंपनी के निदेशक  शोभित गुप्ता और पूरी टीम का सहयोग है साथ ही इज़रायल के कृषि वैज्ञानिक डा. किलीफ और उनकी टीम का विशेष योगदान है। इन विशेषज्ञों ने बागों की मिट्टी, पानी की गुणवत्ता, और पेड़ों की उम्र के अनुसार उर्वरकों का चयन, कीटनाशकों का इको-फ्रेंडली प्रयोग, पैकिंग और शीत भंडारण की आधुनिक तकनीकें सिखाईं। इन उपायों से लीची को अब 20 से 25 दिन तक ताजा रखा जा सकता है।
कोल्ड चेन और तकनीक सक्षम आपूर्ति से बढ़ी बाजार तक पहुंच
मुख्य प्रबंधक झा ने कहा कि पहले लीची की कम शेल्फ लाइफ और परिवहन की सीमाएं इसकी सबसे बड़ी चुनौतियां थीं। लेकिन अब कोल्ड चेन प्रणाली और तकनीकी निगरानी के माध्यम से लीची को न केवल देश के दक्षिण और पश्चिमी राज्यों तक भेजा जा रहा है, बल्कि विदेशों में भी इसके लिए बड़ा बाज़ार तैयार हो रहा है। किसानों की आमदनी में इज़ाफा हुआ है। जहां पहले भारत में हर साल करीब 40 प्रतिशत लीची बर्बाद हो जाती थी, वहीं अब आधुनिक व्यवस्था के चलते यह नुकसान काफी घट गया है। इससे किसानों को न केवल बेहतर दाम मिल रहे हैं, बल्कि अब उन्हें फसल कटने से पहले ही मूल्य तय कर भुगतान की सुविधा भी मिल रही है।
लीची उत्पादक किसान को मिल रहा।

बाग से बाजार तक का लाभ 
बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह का कहना है कि सुपरप्लम के आने से अब किसानों को बेहतर बाज़ार मिलने लगा है और उत्पाद की बर्बादी भी रुकी है। पहले लीची केवल स्थानीय मंडियों तक सीमित थी, अब यह खेत से सीधा अंतरराष्ट्रीय बाज़ार तक पहुंच रही है।मुजफ्फरपुर की शाही लीची अब सिर्फ एक मौसमी फल नहीं, बल्कि आर्थिक संभावना, तकनीकी सफलता और वैश्विक पहचान का प्रतीक बन चुकी है। 
कंपनी नेटवर्क से जुड़े किसान वीरेंद्र महतो, नरेश बाबू, जीतन महतो एवम अन्य किसानो ने कहा कि सुपरप्लम जैसे प्रयासों ने यह दिखा दिया है कि अगर विज्ञान, तकनीक और किसान एक साथ चलें, तो अपने भारत की लीची कि मिठास को पूरी दुनिया चख सकती है।लीची पैक में भरोसे की पहचान मुख्य प्रबंधक बसंत झा ने कहा कि हर पैकिंग पर एक विशेष कोड होता है, जिससे उपभोक्ता यह जान सकते हैं कि फल किस खेत से आया है। एवं बाजार में भेजने से पहले फलो की प्रयोगशाला में जाँच कर उसे पूर्णतया खाने के लिए सुरक्षित होने का परमाण पत्र भी संलग्न करती है l यह पारदर्शिता उपभोक्ताओं को न केवल गुणवत्ता का भरोसा देती है, बल्कि उन्हें अपने भोजन की उत्पत्ति का भी बोध कराती है।

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