अनिल तिवारी, बीरगंज । नेपाल–भारत सीमा क्षेत्र हाल धार्मिक कट्टरपंथ, अवैध धर्मांतरण और सुनियोजित जनसंख्यात्मक असंतुलन के गंभीर संकट से घिरा हुआ है। विदेशी फंडिंग और घुसपैठ के जरिए सीमावर्ती क्षेत्रों में सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को बदलने का प्रयास किया जा रहा है, जिसे नजरअंदाज करना अब असंभव हो गया है।
भारतीय आयकर विभाग की प्रारंभिक जांच में यह खुलासा हुआ है कि दक्षिण भारत की कुछ इस्लामिक संस्थाओं से करीब ₹150 करोड़ की अवैध फंडिंग सीमावर्ती मुस्लिम खातों में भेजी गई है। यह फंड मस्जिद, मदरसा, मजार निर्माण और धर्मांतरण अभियानों में खर्च किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार एक ही बैंक खाते में तमिलनाडु की एक संस्था से ₹12 करोड़ की राशि स्थानांतरित की गई थी।
इन गतिविधियों का केंद्र भारत के बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, लखीमपुर, महराजगंज, पीलीभीत जैसे जिलों में देखा गया है, जो सीधे नेपाल की सीमा से लगे हुए हैं। यही रणनीति अब नेपाल के पर्सा, सर्लाही, रौतहट और बारा जैसे जिलों में भी परिलक्षित हो रही है।
भारत–नेपाल की खुली सीमा का लाभ उठाकर दक्षिण एशियाई कट्टरपंथी जेहादी नेटवर्क सुनियोजित तरीके से धार्मिक विस्तार और जनसंख्यात्मक पुनर्संरचना में लगे हुए हैं। भारत सरकार की खुफिया एजेंसियों और आयकर विभाग ने इस भूभाग को ‘कट्टरपंथी प्रयोगशाला’ में बदलने की विदेशी साजिश का पर्दाफाश किया है।
भारत सरकार ने ऑपरेशन ‘सिन्दूर’ के तहत सैकड़ों अवैध मदरसों को ध्वस्त किया है और संदिग्ध व्यक्तियों के खातों में करोड़ों की ट्रांजेक्शन पकड़ी है। वहीं नेपाल की ओर सुरक्षा सतर्कता और निगरानी का अभाव साफ देखा जा सकता है।
‘छांगुर बाबा’ नेटवर्क से नेपाल तक धर्मांतरण की साजिश
उत्तर प्रदेश के बहराइच से गिरफ्तार ‘छांगुर बाबा’ उर्फ अब्दुल हमीद के बयान ने नेपाल में सक्रिय कन्वर्शन नेटवर्क की परतें उधेड़ी हैं। छांगुर बाबा ने विदेशी फंडिंग के जरिए नेपाल में “नेपाल इस्लामिक सेंटर”, “नेपाल इस्लामिक काउंसिल” और “नेपाल कन्वर्शन नेटवर्क” जैसे संगठनों के माध्यम से धर्मांतरण अभियान चलाने की बात स्वीकार की है।
नेपाल के कई सीमावर्ती इलाकों में गरीब, अशिक्षित युवाओं को इस्लाम धर्म में परिवर्तित करने के लिए शिक्षा, रोजगार और आर्थिक प्रलोभनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। विदेशी NGOs, मदरसा नेटवर्क और धार्मिक संगठनों के माध्यम से सुनियोजित विस्तार जारी है।
मधेश आंदोलन के बाद नेपाल में नागरिकता वितरण की सहज प्रक्रिया और सीमित सुरक्षा निगरानी ने विदेशी जेहादियों के लिए नेपाल में घुसपैठ को आसान बना दिया है। सीमावर्ती क्षेत्रों में हिन्दू मंदिरों की तुलना में मस्जिद और मदरसों की संख्या कई गुना बढ़ गई है, जो धार्मिक असंतुलन और सामाजिक तनाव का बीज बो रही है।
धार्मिक शिक्षा केंद्र, अनाथालय और सामाजिक सेवा संस्थानों की आड़ में वैचारिक कट्टरता और रणनीतिक घुसपैठ का नेटवर्क आकार ले रहा है, जो भविष्य में नेपाल के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
नेपाल सरकार की चुप्पी, भारत की सजगता
जहां भारत सरकार ने सीमावर्ती क्षेत्रों में संदिग्ध गतिविधियों पर निगरानी, स्कैनिंग और सख्त अभियान चलाया है, वहीं नेपाल की ओर से अभी तक वैसी सजगता नहीं दिखाई दे रही। सीमावर्ती चेकपोस्ट, जनपथ और आप्रवासन कार्यालय केवल औपचारिक कार्रवाइयों तक सीमित नजर आते हैं।
टर्की, पाकिस्तान और चीन की नेपाल में बढ़ती कूटनीतिक सक्रियता और ‘मानवीय सहायता’ के नाम पर वैचारिक जेहादी आधार तैयार करने की कोशिशें भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय बनती जा रही हैं।
धार्मिक कट्टरपंथ केवल सामाजिक समरसता के लिए खतरा नहीं है, यह नेपाल–भारत के दीर्घकालिक कूटनीतिक सम्बन्धों में भी अस्थिरता पैदा कर सकता है। तराई क्षेत्र को एक ‘सॉफ्ट इन्फिल्ट्रेशन जोन’ के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति चल रही है, जिससे पाकिस्तान–चीन जैसे भारत विरोधी शक्तियों को लाभ मिल रहा है।
नेपाल में मुस्लिम जनसंख्या जो 20 वर्ष पहले 4.5% थी, अब बढ़कर 9% से अधिक हो गई है। आने वाले वर्षों में यह दर और भी बढ़ने की संभावना है, जिससे सामाजिक संरचना में व्यापक परिवर्तन आ सकता है।
नेपाल–भारत सीमा जो सदियों से सांस्कृतिक, पारिवारिक और आर्थिक रिश्तों का पुल रही है, आज धार्मिक कट्टरपंथ और विदेशी साजिशों की चपेट में आ रही है। यह खतरा न केवल भारत और नेपाल के लिए एक साझा सुरक्षा संकट है, बल्कि उपमहाद्वीप की शांति और स्थायित्व के लिए भी गंभीर चुनौती है।
यदि समय रहते दोनों देश सतर्क नहीं हुए, तो यह आग केवल सीमावर्ती गांवों तक सीमित नहीं रहेगी।

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