अनिल तिवारी
काठमान्डौ ,नेपाल मे बढ़ते चीनी दखल के खिलाफ अब सुगबुगाहट देखी और महसूस की जा सकती है।पोखरा हवाई अड्डा निर्माण से लेकर चीन अधिकृत तिब्बत सीमा के नेपाली भूमि के अधिग्रहण का मसला यहाँ चर्चा में है।जिस देश के सत्ता प्रतिष्ठान से लेकर मीडिया माध्यमों तक मे नेपाल चीन मैत्री और भारत की मुखालफत भरी रहती थी । अब वहाँ चीनका जमकर विरोध भी शुरू है । इसके लिए अगर किसी एक बैनरको श्रेय जाता है ,तो वो राष्ट्रीय एकता अभियान नेपाल है।
इसकी शुरुआत जुलाई 2019 में नेपाल के गोरखा जिले की रुई गाँव की भूमि पर चीन के कब्जे की खबर आने के साथ हुआ था।इस क्रम में घटना का उद्भेदन करने वाले पत्रकार की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु भी चर्चा का विषय थी।
इस घटना के थोड़े दिन पूर्व ही भारतद्वारा नेपाली भूमि के अधिग्रहण को मुद्दा बना कर जनभावनाओं को यहाँ भड़काया गया था।लिपुलेख और कालापानी के मुद्दे पर पूरे नेपाल में भारत विरोधी भावनायें उबाल पर थी।किंतु गोरखा से हुमला जुमला तक नेपाली भूमि पर चीनी कब्जे की खबर आने के बाद भी सर्वत्र एक मौन सा छाया था।
जहाँ सत्ता प्रतिष्ठान इसे झुठलाने मे लगा था तो काठमांडू की राष्ट्रवादी मीडिया ने मौन धारण कर रखा था।बात नागरिक संगठनों के लिए हो तो हर बात भारत को दोषी और षड्यंतकारी ठहराने वाले ये संगठन और नेपाली बुद्धिजीवी तथा राष्ट्रवादियों को भी साँप सूंघ गया था।कुल मिलाकर यहाँ चीन के इस निंदनीय कृत्य के विरोध करने की स्थिति में कोई नही था।किंतु कहते है की समस्यायें स्वयं अपना रास्ता बनाती है।ऐसे परिस्थितियां मे राष्ट्रीय एकता अभियान प्रारंभ हुआ।
इन नितांत नवीन प्रयोग की शुरुआत गोरखा जिले के इस घटना के साथ हुआ।जिसकी शुरुआत नेपाल तराई के लोकतंत्र समर्थक प्रखर हिंदूवादी विनय यादव ने की थी।मधेसी मूल के इस युवा नेपाली नेता ने अपने कुछेक पुराने साथियों के साथ इसका बीड़ा उठाया ।सर्वप्रथम इन्होंने चीन से लगती नेपाली भूमि तक जाने का निर्णय किया।इसके उपरांत इनलोगों ने काठमांडू अवस्थित चीनी राजदूतावास के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया।नेपाल के इतिहास में चीन के विरुद्ध यह पहला प्रदर्शन था।जिस देश के मीडिया हाउस और राजनेताओं को चीन राजदूत सरेआम धमका रहे हो वहाँ के लिए ये एक बिल्कुल नया अनुभव था।
चीन का विरोध अब सड़कों पर सरेआम हो रहा था।खबरें जुबानी जमखर्चो से होते हुए सोशल मीडिया के माध्यम से चलनी शुरू थी।ऐसे में मुख्यधारा के मीडिया संस्थानों को भी इसे दिखाना पड़ा।ऐसा नही है की इस प्रदर्शन और इससे निकले आंदोलन के लिए सभी कुछ अनुकूल ही था। इन्हें अपनी विश्वसनीयता और जन विश्वास के लिए भी काफी तकलीफों से गुजरना पड़ा है।चीन के विरोध के नाते जहाँ ये नेपाली सत्ता प्रतिष्ठानों के आँखों की किरकिरी बन गए।वही इनकी छवि को नुकसान पहुँचाने के लिए इन्हें भारतीय दलाल तक करार दिया गया।किंतु ना तो इनका कारवां और ना ही इनका अभियान रुका।
विरोध और संसाधनों के अभाव के बावजूद इन्होंने देश भर में प्रदर्शन और जन जागरण अभियान चलाया।इस क्रम में विनय यादव और इनके सहयोगियों पर पुलिस की लाठियाँ भी बरसी है।वही इस नाते कई बार जेल भी जाना पड़ा किंतु ये भूमिपुत्र रुके नही।गोरखा की उस घटना से लेकर पोखरा के नये हवाईअड्डा के विकास एवं भारत सीमा के लुम्बनी मे चीनी सहयोग से निर्माणाधीन एयरपोर्ट तक सभी मसलों को लेकर ये अपनी आपत्तियाँ दर्ज करते रहे है।
नेपाल के विकास के नाम पर विभिन्न परियोजना मद मे चीन द्वारा दिये जा रहे कर्ज का भी ये विरोध करते रहे है।इन विषयों पर मुखर विरोध और तथ्य एवं तर्क आधारित इनके संवादों के नाते अब नेपाल में चीनी सहयोग वाले हर योजना को एक अविश्वास के साथ देखा जाता है।
वही भारत को लेकर इनका बेहद स्पष्ट नजरिया है।विनय यादव के अनुसार भारत और नेपाल का रिश्ता एक पड़ोसी से कही अधिक का है।यह संबंध केवल रोजगार ही नही अपितु रिश्तेदारी और एक समान सोच एवं संस्कृति का भी है।इस पुरातन और प्रामाणिक रिश्ते को प्रीतिपूर्वक बनाये रखने की जिम्मेदारी केवल भारत नही नेपाल के लोगो की भी है।इसलिए महज विकास के नाम अथवा सब्जबाग या फिर दोनों पड़ोसी देशों से सामान संबंध के नाम पर भारत की उपेक्षा और चीनी हस्तक्षेप को कतई स्वीकार्य नही किया जा सकता है।
रहा भारत की बात तो हमें उसके ओर से व्यक्त की गई चिंता और आपत्तियों का सम्मान तथा निराकरण भी करना चाहिए।क्योंकि हमारे रिश्ते प्रकृति और परमात्मा प्रदत्त है।किंतु इनके द्वारा भारत से बेहतर रिश्तों की वकालत और चीन के धूर्ततापूर्ण कृत्यों का हर बार सामने लाया जाना नेपाल में कइयों को पसंद नहीं है।इस नाते चीन के अधिकृत शासकीय पत्र ग्लोबल टाइम्स से लेकर नेपाल के काठमांडू अवस्थित चीनी राजदूतावास तक को विनय यादव और उनका अभियान खटकता रहता है।
इसलिए इनकी छवि खराब किये जाने से लेकर इनके प्राणघातक तक के प्रयास चलते रहते है।किंतु ये है की देश के कोने कोने तक चीनी चालबाजी और भारतीय प्रेम संदेश को लेकर बिना प्राणों की चिंता किया दौरे पर दौरा करते रहते है।हाल ही मे इनकी संस्था और इनके द्वारा नेपाल में चीन संग बीआरआई की न केवल इन्होंने पुरजोर विरोध किया है अपितु इसे नेपाल पर चीनी कब्जे का एक षड्यंत्र भी करार दिया है।
इस संबंध में इन्होंने दुनिया के अन्य देशों के उदाहरण को रखते हुए कई सारे सवाल प्रधानमंत्री ओली से किये हैं।इन दिनों विनय यादव एक व्यक्तिगत यात्रा क्रम में दिल्ली आये हैं।इसी दौरान उन्होंने हमारे प्रतिनिधि संग नेपाल में बढ़ते चीनी प्रभाव और भारत नेपाल रिश्तों पर अपनी बातें रखी है।इसे हम थोड़े संक्षेपण के साथ आपसे साझा कर रहे है।
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