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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कैप्टन निषाद की यादों को आज करेंगे साझा

 INT NEWS NETWORK 

-- कैप्टन जयनारायण निषाद का वार्ड पार्षद से केंद्रीय मंत्री तक रहा सफर

-- वंचितों की आवाज कैप्टन जय नारायण निषाद की पुण्यतिथि पर पटना में दी जाएगी श्रद्धांजलि 

---पांच बार रहे संसद केंद्र में संभाल मंत्री का दायित्व 

आईएनटी न्यूज़ नेटवर्क पटना::मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वंचितों के आवाज रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद से जुड़ी राजनीतिक यादों को आज साझा करेंगें। श्री कृष्ण मेमोरियल हाल, पटना में आयोजित कैप्टन जयनारायण  प्रसाद निषाद की सातवीं पुण्यतिथि 

 समारोह की तैयारी पूरी कर ली गई है।  कार्यक्रम के संयोजक कैप्टन जयनारायण प्रसाद निषाद के पुत्र पूर्व सांसद अजय निषाद ने बताया कि बिहार के हर जिले से पुण्यतिथि समारोह में राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ताओं व नेताओं की भागीदारी होगी। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि  मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार ,विशिष्ट अतिथियों में बिहार  भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष‌ संजय सरावगी, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी , उद्योग मंत्री  दिलीप जायसवाल , समाज कल्याण मंत्री  मदन सहनी जी, नेपाल सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री  सांसद  नेपाल प्रदीप यादव शामिल होंगे।कार्यक्रम की अध्यक्षता  कैप्टन जयनारायण  की पुत्रवधु बिहार सरकार की

पिछड़ा वर्ग एवं अतिपिछड़ा कल्याण मंत्री   रमा निषाद जी करेंगी।  कैप्टन निषाद फाउंडेश की ओर से आयोजित समारोह में बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति होगी।

 कैप्टन निषाद का वार्ड पार्षद से केंद्रीय मंत्री तक रहा सफर

 पूर्व केन्द्रीय मंत्री कैप्टन जयनारायण प्रसाद निषाद ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत नगरपालिका की राजनीति से की थी। 1972 में मुजफ्फरपुर से अलग होकर वैशाली जिला बना था। वैशाली जिला बनने के बाद कैप्टन जयनारायण प्रसाद निषाद, वृषिण पटेल समेत कई दिग्गज नेताओं ने मिलकर युवक मोर्चा का गठन किया था। इस मोर्चा ने पहली बार नगरपालिका चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। इस मोर्चा के कई सदस्य नगरपालिका के चुनावी मैदान में उतरे थे। नगरपालिका के चुनाव में इस मोर्चा के उम्मीदवारों ने कई सीटें हासिल की थीं। वार्ड नंबर-1 से चुनाव जीतकर आए कैप्टन निषाद नगरपालिका के चेयरमैन चुने गए थे। उसके बाद उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दूसरी बार फरवरी 1978 में फिर नगरपालिका के चेयरमैन बने। उन्होंने फिर नवंबर 1985 में तीसरी बार नगरपालिका के चेयरमैन की कुर्सी संभाली। इसके बाद वे नगरपालिका की राजनीति से अलग होकर जिले की राजनीति में सक्रिय रूप से जुड़ गए। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पहली बार लालगंज विधानसभा से कांग्रेस के दिग्गज एलपी शाही के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इस चुनाव के बाद वे प्रदेश के राजनीति में काफी सक्रिय हो गए और अपनी एक पहचान बना ली। उन्होंने मोतिहारी से भी चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी। वैशाली लोकसभा के उपचुनाव में निर्दल चुनाव लडे थे जिसमें लवली आनंद जीती थी इन चुनाव में भले ही वे चुनाव हारते गए लेकिन प्रदेश की राजनीति में उनका ग्राफ बढ़ता गया। वे कई दलों का रास्ता तय करते हुए कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए। काफी लंबे समय तक वे कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे लेकिन बाद में वे कांग्रेस से अलग हो गए और एक बार फिर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मुजफ्फरपुर संसदीय सीट से अपने जमाने के कद्दावर मजदूर नेता जार्ज फर्नांडीस के विरुद्ध चुनाव लड़कर काफी शोहरत बटोरी। इस चुनाव में भी वे भले ही हार गए लेकिन राजनीतिक क्षेत्र में उन्होंने अपनी एक पकड़ बना ली। इस पकड़ का ही नतीजा रहा कि  लालू प्रसाद स्वयं हाजीपुर के हथसारगंज स्थित उनके घर पहुंचे और अपनी पार्टी से जोड़ने के साथ 1996 के चुनाव में उन्हे मुजफ्फरपुर से उम्मीदवार बना दिया। इस चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की और केन्द्र में वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाए गए। उसके बाद वे गैर पारंपरिक उर्जा स्त्रोत मंत्रालय के मंत्री भी बनाए गए। मंत्री बनने के बाद उनकी पहचान देश स्तर पर हुई और अपने समुदाय के देश भर के नेता बन गए। उनकी पहचान देश भर में निषादों के नेता के रूप में बन गई। बाद में वे जदयू में चले गए और इस दल से वे दो बार सांसद चुने गए। इसके बाद भी वे स्थिर नहीं रहे और एक बार पुन: दल बदलते हुए भाजपा में चले गए और इस दल की ओर से राज्यसभा सदस्य बनाए गए। एक बार चुनाव जीत जाने के बाद वे कभी चुनाव हारे नहीं। अपनी अस्वस्थता के कारण उन्होंने 2014 का चुनाव नहीं लड़ा और इस सीट से उनके पुत्र अजय निषाद ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा। कैप्टन निषाद ने अपनी छवि के बलबूते अपने पुत्र को भी चुनाव मे जीत दिलाकर संसद में भेज दिया।

कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद। नाम की तरह लंबा कद। दलों में लंबी राजनीतिक पारी खेेल कर 88 साल की उम्र में विदा हुए थे। राजनीतिक दलों का बदलाव उनके  वजूद से जुड़ा था। दल बदलने से ही दूसरों को उनके प्रभाव का पता चलता था। मुजफ्फरपुर से पांच बार लोकसभा गए। दल बदलने का असर उनकी जनता पर कभी नहीं पड़ा। जिस दल से वह चुनाव मैदान में आते उनके लोग उसी के हो जाते थे।

दिल्ली वाले सरकारी आवास का एक हिस्सा आम लोगों के लिए आरक्षित रहता था। उनके निधन के बाद उनके पुत्र अजय निषाद सांसद बने तो वे भी इस सुविधा को जारी रखे । मरीजों के लिए अलग इंतजाम। राज्य का कोई आदमी सरकारी आवास में पहुंच जाए उसे हरसंभव मदद की कोशिश होती थी। सेहत अच्छी थी तो कैप्टन निषाद सबसे हाल-चाल पूछना नहीं भूलते थे। यह भी जनता की नब्ज परखने का उनका एक माध्यम था। वह वंचितों के आवाज रहे ।

राजनीति पारी रहा बेहतर::

चार बार लोकसभा 1996,1998,1999,2009 

एक बार राज्यसभा

  2005 में  बीजेपी से राज्य सभा सदस्य रहे।

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