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-- मंच का होगा विस्तार, राष्ट्रीय संगोष्ठी का अगस्त में होगा आयोजन
आईएनटी न्यूज़ नेटवर्क, मुजफ्फरपुरबिहार विभूति महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित सहदेव झा की याद में स्मृति मंच का गठन किया गया। पड़ाव पोखर में स्वतंत्रता सेनानी के प्रपौत्र समाजसेवी ओमप्रकाश झा के आवास परसनातन समाज की बैठक हुई। जिसमें बिहार विभूति महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित सहदेव झा स्मृति मंच का गठन किया गया। राजनीतिक चिंतक पंडित अशोक झा मीनापुर को संयोजक बनाया गया। जदयू नेता सुनील पांडेय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुजफ्फरपुर की हवाई अड्डा की जनसभा में
स्वतंत्रता सेनानी सहदेव झा का नाम लेकर श्रद्धांजलि दी । अब मंच उनके योगदान को लेकर मंच राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करेगा। अगस्त में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन होगा। इसमें स्थानीय के साथ राष्ट्रीय स्तर के वक्ता शामिल होंगे।उनकी जयंती पर बीस अक्टूबर को स्वतंत्रा सेनानी सम्मान समारोह का आयोजन किया जाएगा। मालूम हो कि उनका जन्म 20 अक्टूबर 1874 और 20 दिसंबर 1982 को उनका निधन हुआ। बैठक में समाजवादी नेता तेज नारायण झा तेजू भाई, चाणक्य विद्यापति सोसाइटी के संरक्षक मनमन त्रिवेदी, गरीबजनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक झा,भाकपा माले के परशुराम पाठक, जदयू नेता कुंदन शांडिल्य,लोजपा रामविलास के नेता काशीनाथ झा, स्वतंत्रा सेनानी के पौत्र परमानंद झा, धर्मेंद्र झा ,प्रशांत झा आदि मुख्य शामिल रहे। कार्यक्रम का संचालन ओमप्रकाश झा और धन्यवाद ज्ञापन मंच के संयोजक अशोक झा ने किया।
मंच करेगी यह पहल
----महान स्वतंता सेनानी पंडित सहदेव झा जी कि प्रतिमा मीनापुर, जिला मुख्यालय के साथ विधानसभा, और लोकसभा में भी लगाई जाए।
---उनकी जीवनी को सरकार पाठ्य पुस्तक के सिलेबस में शामिल करें।
-----मुजफ्फरपुर --मीनापुर पथ का नाम महान स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर किया जाए
----सिकन्दरपुर में बने मेरिन ड्राइव पर महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित सहदेव झा की आदमकद प्रतिमा लगाई जाए।
स्वतंत्रता सेनानी का यह रहा योगदान
वक्ताओं ने कहा कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में मीनापुर थाना पर तिरंगा फहराने की ऐतिहासिक घटना में सहदेव झा ने नेतृत्व किया उनकी प्रमुख भूमिका रही। इस दौरान अंग्रेजों की गोली से बांगूर सहनी शहीद हुए और कई लोग घायल हुए। सहदेव झा स्वयं भी घायल हुए। आंदोलनकारियों ने थानेदार लुईस वालर को थाना परिसर में जिंदा जला दिया, जिसकी गूंज ब्रिटिश संसद तक पहुँची। उसी केस में जुब्बा सहनी को फांसी दी गई और सहदेव झा सहित दर्जनों को कठोर जेलयात्रा झेलनी पड़ी।15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ, तो राजनीतिक कैदियों की रिहाई के साथ सहदेव झा बाहर आए।
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